SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 386 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह करके आहारादि लेने वाला एवं भोगने वाला श्वा-वनीपक कहलाता है। (5) श्रमण वनीपक:-श्रमण के पाँच भेद कहे जा चुके हैं। जो दाता श्रमणों का भक्त है उसके आगे श्रमण-दान की प्रशंसा करके आहारादि प्राप्त करने वाला श्रमणवनीपक है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 454 ) ३७४-चस्त्र के पाँच भेदः-- निम्रन्थ और निग्रन्थी को पाँच प्रकार के वस्त्र प्रहण करना और सेवन करना कल्पता है / वस्त्र के पांच प्रकार ये हैं :(1) जाङ्गमिक। (2) भाङ्गिक / (3) सानक / (4) पोतक। (5) तिरीडपट्ट। (1) जाङ्गमिकः-त्रस जीवों के रोमादि से बने हुए वस्त्र जाङ्गमिक कहलाते हैं / जैसे:-कम्बल वगैरह। (2) भाङ्गिक:-अलसी का बना हुआ वस्त्र भाङ्गिक कहलाता है। (3) सानक:--सन का बना हुआ वस्त्र सानक कहलाता है। (4) पोतक:-कपास का बना हुआ वस्त्र पोतक कहलाता है। (5) तिरीडपट्टः-तिरीड़ वृक्ष की छाल का बना हुआ कपड़ा तिरीड़ पट्ट कहलाता है।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy