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________________ 375 भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (4) संघः-गणों के समुदाय को संघ कहते हैं / (5) साधर्मिक:-लिङ्ग और प्रवचन की अपेक्षा समान धर्म वाला साधु साधर्मिक कहा जाता है। (ठाणांग 5 सूत्र 365) (भगवती सुत्र शतक 8 उद्देशा 8) ३६२-पाँच परिज्ञा-चस्तु स्वरूप का ज्ञान करना और ज्ञान पूर्वक उसे छोड़ना परिज्ञा है। परिज्ञा के पांच भेद हैं। (1) उपधि परिज्ञा (2) उपाश्रय परिज्ञा (3) कषाय परिज्ञा (4) योग परिज्ञा (5) भक्तपान परिज्ञा / (ठाणांग 5 उद्देशा 2 सूत्र 420) ३६३-पांच व्यवहार-मोक्षाभिलाषी आत्माओं की प्रवृत्ति निवृत्ति को एवं तत्कारणक ज्ञान विशेष को व्यवहार कहते हैं / व्यवहार के पाँच भेदः-- (1) आगम व्यवहार (2) श्रुतव्यवहार (3) आज्ञा व्यवहार (4) धारणाव्यवहार (1) आगम व्यवहारः केवल ज्ञान, मनः पर्यय ज्ञान, अवधिज्ञान, चौदह पूर्व, दशपूर्व और नव पूर्व का ज्ञान आगम कहलाता है / आगम ज्ञान से प्रवर्तित प्रवृत्ति निवृत्ति रूप व्यवहार भागम व्यवहार कहलाता है। (2) श्रुत व्यवहार:- आचार प्रकल्प आदि ज्ञान श्रुत है। इससे प्रवाया जाने वाला व्यवहार श्रुतव्यवहार कहलाता है। नव, दश, और चौदह पूर्व का ज्ञान भी श्रुत रूप है परन्तु
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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