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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 345 (3) गृहपति अवग्रहः-मण्डल का नायक या ग्राम का मुखिया गृहपति कहलाता है / गृहपति से अधिष्ठित क्षेत्र में रहते हुए साधुओं का गृहपति की अनुमति मांगना एवं उसकी अनुमति से कोई वस्तु लेना गृहपति अवग्रह है। (4) सागारी (शय्यादाता) अवग्रहः-घर, पाट, पाटला आदि के लिये गृह स्वामी की आज्ञा प्राप्त करना सागारी अवग्रह है। (5) साधर्मिक अवग्रहः-समान धर्मवाले साधुओं से उपाश्रय आदि की आज्ञा प्राप्त करना साधर्मिकावग्रह है। साधर्मिक का अवग्रह पाँच कोस परिमाण जानना चाहिये। वसति (उपाश्रय) आदि को ग्रहण करते हुए साधुओं को उक्त पाँच स्वामियों की यथायोग्य आज्ञा प्राप्त करनी चाहिये। उक्त पांच स्वामियों में से पहले पहले के देवेन्द्र अवग्रहादि गौण हैं और पीछे के राजावग्रहादि मुख्य हैं। इसलिये पहले देवेन्द्रादि की आज्ञा प्राप्त होने पर भी पिछले राजा आदि की आज्ञा प्राप्त न हो तो देवेन्द्रादि की आज्ञा बाधित हो जाती है। जैसे देवेन्द्र से अवग्रह प्राप्त होने पर यदि राजा अनुमति नहीं दे तो साधु देवेन्द्र से अनुज्ञापित वसति आदि उपभोग नहीं कर सकता / इसी प्रकार किसी वसति आदि के लिये राजा की आज्ञा प्राप्त हो जाय पर गृहपति की आज्ञा न हो तो भी साधु उसका उपभोग नहीं कर सकता। इसी प्रकार गृहपति की आज्ञा
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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