SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 342 श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला यहाँ परिषह उपसर्ग से प्रायः आक्रोश और वध रूप दो परिषह तथा मनुष्य सम्बन्धी प्रद्वेषादि जन्य उपसर्ग से तात्पर्य है। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 406) ३३२-केवली के परिषह सहन करने के पांच स्थान: पाँच स्थान से केवली उदय में आये हुए आक्रोश, उपहास आदि उपरोक्त परिषह, उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन करते हैं। (1) पुत्र शोक आदि दुःख से इस पुरुष का चित खिन्न एवं विक्षिप्त है। इस लिये यह पुरुष गाली देता है / यावत् उपकरणों की चोरी करता है। (2) पुत्र-जन्म आदि हर्ष से यह पुरुष उन्मत्त हो रहा है। इसी से यह पुरुष गाली देता है, यावत् उपकरणों की चोरी करता है। (3) यह पुरुष देवाधिष्ठित है। इसकी आत्मा पराधीन है / इसी से यह पुरुष मुझे गाली देता है, यावद उपकरणों की चोरी करता है। (5) परिपह उपसर्ग को सम्यक् प्रकार वीरता पूर्वक, अदीनभाव से सहन करते हुए एवं विचलित न होते हुए मुझे देख कर दूसरे बहुत से छमस्थ श्रमण निम्रन्थ उदय में आये हुए परिषह उपसर्ग को सम्यक प्रकार सहेंगे, खमेंगे एवं परिषह उपसर्ग से धर्म से चलित न होंगे। क्योंकि प्रायः सामान्य लोग महापुरुषों का अनुसरण किया करते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 406)
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy