SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३३३ ( ४ ) तप आचार --इच्छा निरोध रूप अनशनादि तप का सेवन करना तप आचार है । (५) वीर्याचार - अपनी शक्ति का गोपन न करते हुए धर्मकार्यों में यथाशक्ति मन, वचन, काया द्वारा प्रवृत्ति करना चार है । ( ठाणांग ५ उद्देशा २ सूत्र ४३२ ) ( धर्मसंग्रह अधिकार ३ पृष्ठ १४० ) ३२५ -- चार प्रकल्प के पाँच प्रकार- आचारांग नामक प्रथम अङ्ग के निशीथ नामक अध्ययन को चार प्रकल्प कहते हैं । आचारांग सूत्र की पंचम चूलिका है। हैं। इसमें पाँच प्रकार के प्रायश्चित्तों का वर्णन है। इसी लिये हैं । वे ये हैं इसके पाँच प्रकार कहे जाते I (१) मासिक उद्घातिक । (३) चौमासी उद्घातिक । (२) मासिक अनुद्घातिक । (४) चौमासी अनुद्घातिक । (५) आरोपणा । निशीथ अध्ययन इसके बीस उद्देशे (१) मासिक उद्घातिकः उद्घात अर्थात् विभाग करके जो प्रायश्चित्त दिया जाता है वह उद्घातिक प्रायश्चित है । एक मास का उद्घातिक प्रायश्चित्त मासिक उद्घातिक है । इसी को लघु मास प्रायश्चित्त भी कहते हैं । मास के आधे पन्द्रह दिन, और मासिक प्रायश्चित्त के पूर्व वर्ती पच्चीस दिन के आधे १२|| दिन इन दोनों को जोड़ने से २७|| दिन होते हैं। इस प्रकार भाग करके
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy