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________________ ३२६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१) सत्यवादी साधु को हास्य का त्याग करना चाहिये क्योंकि हास्य वश मृषा भी बोला जा सकता है। (२) साधु को सम्यग्ज्ञान पूर्वक विचार करके बोलना चाहिये । क्योंकि विना विचारे बोलने वाला कभी झूठ भी कह सकता है। (३) क्रोध के कुफल को जान कर साधु को उसे त्यागना चाहिये । क्रोधान्य व्यक्ति का चित्त अशान्त हो जाता है। वह स्व, पर का भान भूल जाता है और जो मन में आता है वही कह देता है । इस प्रकार उसके झूठ बोलने की बहुत संभावना है। (४) साधु को लोभ का त्याग करना चाहिये क्योंकि लोभी व्यक्ति धनादि की इच्छा से झूठी साक्षी आदि से झूठ बोल सकता है। (५) साधु को भय का भी परिहार करना चाहिये । भयभीत व्यक्ति प्राणादि को बचाने की इच्छा से सत्य व्रत को दृपित कर असत्य में प्रवृत्ति कर कर सकता है। ३१६-अदत्तादान विरमण रूप तीसरे महाव्रत की पाँच भावनाएं(१) साधु को स्वयं (दूसरे के द्वारा नहीं ) स्वामी अथवा स्वामी से अधिकार प्राप्त पुरुष को अच्छी तरह जानकर शुद्ध अवग्रह (रहने के स्थान) की याचना करनी चाहिये । अन्यथा साधु को अदत्त ग्रहण का दोष लगता है। (२) अवग्रह की आज्ञा लेकर भी वहाँ रहे हुए तृणादि ग्रहण के लिये साधु को आज्ञा प्राप्त करना चाहिये। शय्यातर का
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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