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________________ ३२४ श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला (४) स्वामी द्वारा निर्दोप आहार दिये जाने पर भी गुरु की आज्ञा प्राप्त किये बिना उसे भोगना गुरु अदत्तादान है। किसी भी क्षेत्र एवं वस्तु विषयक उक्त चारों प्रकार के अदनादान से सदा के लिये तीन करण तीन योग से निवृत होना अदनादान विरमण रूप तीसरा महाव्रत है। (४) मैथुन विरमण महाव्रत-देव, मनुष्य और तिर्यश्च सम्बन्धी दिव्य एवं औदारिक काम-सेवन का तीन करण तीन योग से त्याग करना मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महावत है । (५) परिग्रह विरमण महाव्रतः-अल्प, बहु, अणु, स्थूल सचिन अचिन आदि समस्त द्रव्य विषयक परिग्रह का तीन करण तीन योग से त्याग करना परिग्रह विरमण रूप पाँचवाँ महावत है । मूर्छा, ममत्व होना भाव परिग्रह है और वह त्याज्य है । मू भाव का कारण होने से बाह्य सकल वस्तुएं द्रव्य परिग्रह हैं और वे भी त्याज्य हैं । मावपरिग्रह मुख्य है और द्रव्य परिग्रह गौण । इस लिए यह कहा गया है कि यदि धर्मोपकरण एवं शरीर पर यति के मर्छा, ममता भाव जनित राग भाव न हो तो वह उन्हें धारण करता हुआ भी अपरिग्रही ही है। (दशवैकालिक अध्ययन ४) (ठाणांग ५ सूत्र ३८६) (धर्मसंग्रह अधिकार ३ पृष्ठ १२० से १२४) (प्रवचन सारोद्धार गाथा ५५३) ३१७--प्राणातिपात विग्मण रूप प्रथम महावत की पाँच भावनाएं:
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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