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________________ ३१४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अथवा: मांगने पर कुपित होना और होते हुए भी न देना, मत्सरिता अतिचार है । अथवा: कपाय कलुषित चित से साधु को दान देना मत्सरिता अतिचार है । उपासक दशांग ) ( हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८३७-३८) my ३१३ - अपश्चिम मारणान्तिकी संलेखना के पाँच अतिचार:अन्तिम मरण समय में शरीर और कपायादि को कृश करने वाला तप विशेष अपश्चिम मारणान्तिकी संलेखना है। इसके पाँच अतिचार हैं: (१) इहलोकाशंसा प्रयोग (३) जीविताशंसा प्रयोग (२) परलोकाशंसा प्रयोग । (४) मरणाशंसा प्रयोग (५) कामभोगाशंसा प्रयोग । (१) इहलोकाशंमा प्रयोगः - इहलोक अर्थात् मनुष्य लोक विषयक इच्छा करना । जैसे जन्मान्तर में मैं राजा, मन्त्री या सेठ होऊँ ऐसी चाहना करना इहलोकाशंसा प्रयोग अतिहै 1 चार (२) परलोकाशंसा प्रयोगः -- परलोक विषयक अभिलाषा करना, जैसे मैं जन्मान्तर में इन्द्र या देव होऊँ, ऐसी चाहना करना, परलोकाशंसा प्रयोग अतिचार है ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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