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________________ २६३ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह सामने वाले की भलाई के लिये गांठ, मस्सा वगैरह काटना, जैसे डाक्टर या वैद्य चीरफाड़ करते हैं । डाम देकर जलाना आदि सापेक्ष छविच्छेद है । सापेक्ष छविच्छेद से श्रावक अतिचार के दोष का भागी नहीं होता। (४) अतिभार-द्विपद, चतुष्पद पर उसकी शक्ति से अधिक भार लादना अतिभार है । श्रावक को मनुष्य अथवा पशु पर क्रोध अथवा लोभवश निर्दयता के साथ अधिक भार नहीं धरना चाहिये । और न मनुष्य तथा पशुओं पर बोझ लादने की वृत्ति करनी चाहिये। यदि अन्य जीविका न हो और यह वृति करनी ही पड़े तो करुणा भाव रख कर, सामने वाले के स्वास्थ्य का ध्यान रखता हुआ करे । मनुष्य से उतना ही भार उठवाना चाहिये जितना वह स्वयं उठा सके और स्वयं उतार सके । ऊँट, बैल, आदि पर भी स्वाभाविक भार से कम लादना चाहिये । हल, गाड़ी वगैरह से बैलों को नियत समय पर छोड़ देना चाहिये। इसी तरह गाड़ी, तांगे, इक्के, घोड़े आदि पर सवारी चढ़ाने में भी विवेक रखना चाहिये। (५) भक्तपान विच्छेद-निष्कारण निर्दयता के साथ किसी के आहार पानी का विच्छेद करना भक्तपान विच्छेद अतिचार है । तीत्र क्षुधा और प्यास से व्याकुल होकर कई प्राणी मर जाते हैं । और भी इससे अनेक दोषों की सम्भावना है। इम लिये इम अतिचार का परिहार करना चाहिये । रोगादि निमिन से वैद्यादि के कहने पर, या शिक्षा के हेतु आहार पानी न देना या भय दिखाने के लिये आहार न देने की
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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