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________________ २६० श्री सेठिया जैन प्रन्थमाल औदारिक शरीर धारी अर्थात् मनुष्य तियञ्च के शरीर को धारण करने वाली स्त्रियों के साथ एक करण एक योग से ( अर्थात् काय से सेवन नहीं करूँगा इस प्रकार ) तथा वैक्रिय शरीरधारी अर्थात् देव शरीरधारी स्त्रियों के साथ दो करण तीन योग से मैथुन सेवन का त्याग करना स्वदार-मन्तोष नामक चौथा अणुव्रत है। (५) इच्छा-परिमाण:-(परिग्रह परिमाण ) क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, हिरण्य, सुवर्ण, द्विपद, चतुष्पद एवं कुप्य ( मोने चांदी के सिवा कामा, ताँबा, पीतल आदि के पात्र तथा अन्य घर का सामान ) इन नव प्रकार के परिग्रह की मर्यादा करना एवं मर्यादा उपरान्त परिग्रह का एक करण तीन योग से त्याग करना इच्छा-परिमाण व्रत है । तृष्णा, मूळ कम कर सन्तोष रत रहना ही इस त का मुख्य उद्देश्य है। हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८१७ से ८२६) (ठाणांग ५ सूत्र ३८६) (उपासक दशांग) (धर्म संग्रह अधिकार २) ३०१-अहिंमा अणुव्रत (स्थूल प्राणातिपात-विरमण व्रत ) के पांच अतिचार: वर्जित कार्य को करने का विचार करना अतिक्रम है। कार्य-पूर्ति यानि व्रत भङ्ग के लिए साधन एकत्रित करना व्यतिक्रम है। व्रतभङ्ग की पूरी तैयारी है परन्तु जब तक व्रत भङ्ग नहीं हुआ है तब तक अतिचार हैं। अथवा
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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