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________________ २६२ श्री सेठिया जैन मन्थमाला जघन्य एक समय उत्कृष्ट छः श्रावलिका और सात समय की होती है । सास्वादान समकित में अनन्तानुबन्धी कषायों का उदय रहने से जीव के परिणाम निर्मल नहीं रहते । इस में तत्त्वों में अरुचि अव्यक्त (अप्रगट)रहती है और मिथ्यात्व में व्यक्त (प्रकट)। यही दोनों में अन्तर है । सास्वादान समकित का अन्तर पड़े तो जघन्य अन्त मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अद्ध पुद्गल परावर्तन काल का । यह समकित भी एक भव में जघन्य एक बार उत्कृष्ट दो बार तथा अनेक भवों में जघन्य एक बार उत्कृष्ट पाँच बार प्राप्त हो सकती है। (३) क्षायोपशमिक समाकित-अनन्तानुबन्धी कषाय तथा उदय प्राप्त मिथ्यात्व को क्षय करके अनुदय प्राप्त मिथ्यात्व का उपशम करते हुए या उसे सम्यक्त्व रूप में परिणत करते हुए तथा सम्यक्त्व मोहनीय को वेदते हुए जीव के परिणाम विशेष को क्षायोपशमिक समकित कहते हैं । क्षायोपशमिक समकित की स्थिति जघन्य अन्त मुहूर्त और उत्कृष्ट ६६ सागरोपम से कुछ अधिक है । इसका अन्तर पड़े तो जघन्य अन्तमुहूर्त का उत्कृष्ट देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल का । यह समकित एक भव में जघन्य एक बार उत्कृष्ट प्रत्येक हज़ार बार और अनेक भवों में जघन्य दो बार उत्कृष्ट असंख्यात बार होती है। (४) वेदक समकित-क्षायोपशमिक समकित वाला जीव सम्यक्त्व मोहनीय के पुञ्ज का अधिकांश क्षय करके जब सम्यक्त्व मोहनीय के आखिरी पुद्गलों को वेदता है । उस समय होने
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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