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________________ २५० श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (१) सद्भाव प्रतिषेध-विद्यमान वस्तु का निषेध करना सद्भाव प्रतिषेध है । जैसे यह कहना कि आत्मा, पुण्य, पाप आदि नहीं हैं। (२) असद्भावोद्भावन-अविद्यमान वस्तु का अस्तित्व बताना असद्भावोद्भावन है । जैसे यह कहना कि आत्मा सर्व व्यापी है। ईश्वर जगत् का कर्ता है । आदि । (३) अर्थान्तर-एक पदार्थ को दूसरा पदार्थ बताना अर्थान्तर है। जैसे गाय को घोड़ा बताना। (४) गर्हा-दोष प्रकट कर किसी को पीडाकारी वचन कहना गर्दा (असत्य) है । जैसे काणे को काणा कहना । (दशवैकालिक सूत्र अध्ययन ६) २७ : चतुष्पद तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय के चार भेदः-- (१) एक खुर (२) द्विखुर (३) गण्डी पद (४) सनख पद (१) एक खुर-जिसके पैर मैं एक खुर हो । वह एक खुर चतुष्पद है । जैसे घोड़ा, गदहा वगैरह । (२) द्विखुर-जिसके पैर में दो खुर हो । वह द्विखुर चतुष्पद है जैसे गाय, भैंस वगैरह। (३) गण्डीपद-सुनार की एरण के समान चपटे पैर वाले चतुष्पद गण्डीपद कहलाते हैं। जैसे हाथी, ऊँट वगैरह । (४) सनख पद-जिनके पैरों में नख हों, वे सनख चतुष्पद कहलाते हैं। जैसे सिंह, चीता, कुत्ता वगैरह । (ठाणांग ४ सूत्र ३५०)
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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