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________________ १६० श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला इस प्रकार प्रत्येक वस्तु स्व चतुष्टय की अपेक्षा मद्रूप एवं पर चतुष्टय की अपेक्षा अमद् रूप है । ( न्यायप्रदीप अध्याय ७ ) परिच्छेद ४ सूत्र १५ की टीका ) (रत्नाकरावतारिका (२) धर्म कथानुयोग | (४) द्रव्यानुयोग । २११ - अनुयोग के चार भेद:(१) चरण करणानुयोग (२) गणितानुयोग चग्ण करणानुयोगः—व्रत, श्रमण धर्म, संयम, वैयावृत्य, गुप्ति, क्रोधनिग्रह आदि चरण हैं । पिण्ड विशुद्धि, समिति, पडिमा आदि करण हैं । चरण करण का वर्णन करने वाले आचाराङ्गादि शास्त्रों को चरण करणानुयोग कहते हैं । धर्म कथानुयोगः - धर्म कथा का वर्णन करने वाले ज्ञाताधर्मकथाङ्ग, उत्तराध्ययन आदि शास्त्र धर्म कथानुयोग हैं । गणितानुयोग :- सूर्यप्रज्ञप्ति यदि गणित प्रधान शास्त्र गणिता योग कहलाते हैं | द्रव्यानुयोगः - द्रव्य, पर्याय आदि का व्याख्यान करने वाले दृष्टिवाद आदि द्रव्यानुयोग हैं। ( दशवेकालिक सूत्र सटीक पृष्ठ 3 नियुक्ति गाथा ३ ) २१२ -- काव्य के चार भेद: (१) गद्य (२) पद्य (३) कथ्य (४) गेय । गद्यः -- जो काव्य छन्द बद्ध न हो वह गद्य काव्य है । पद्यः -- छन्द बद्ध काव्य पद्य है । कथ्यः -कथा प्रधान काव्य कथ्य 1 गेयः -- गायन के योग्य काव्य को गेय कहते हैं । --
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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