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________________ १६६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१२) हरिकेशीयः जातिवाद का खण्डन, जाति मद का दुष्परिणाम, तपस्वी की त्याग दशा, शुद्ध तपश्चर्या का दिव्य प्रभाव, सच्चो शुद्धि किस में है ? (१३) चित्त संभूतीयः संस्कृति एवं जीवन का सम्बन्ध, प्रेम का आकर्षण, चित्त और संभूति इन दोनों भाईयों का पूर्व इतिहास, छोटी सी वासना के लिए भोग, पुनर्जन्म क्यों ? प्रलोभन के प्रवल निमित्त मिलने पर भी त्यागी की दशा, चित्त और संभूति का परस्पर मिलना, चित्त मुनि का उपदेश, संभूति का न मानना, निदान (नियाणा) का दुष्परिणाम, सम्भूति का घोर दुर्गति में जाकर पड़ना। (१४) इषुकारीयः ऋणानुबन्ध किसे कहते हैं । छः साथी जीवों का पूर्ण वृत्तान्त और इषुकार नगर में उनका पुनः इकट्ठा होना, संस्कार की स्फूर्ति, परम्परागत मान्यताओं का जीवन पर प्रभाव, गृहस्थाश्रम किस लिए ? सच्चे वैराग्य की कसौटी, आत्मा की नित्यता का मार्मिक वर्णन । अन्त में पुरोहित के दो पुत्र, पुरोहित एवं उसकी पत्नी, इषुकार राजा और रानी इन छः ही जीवों का एक दूसरे के निमित्त से संसार त्याग और मुक्ति प्राप्ति । (१५) स भिक्खुः आदर्श भिक्षु कैसा हो ? इसका स्पष्ट तथा हृदयस्पर्शी वर्णन
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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