SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १२ ] यहाँ मैं केवल उनके नाम का उल्लेख करके ही अग्रसर होता हूँ । इसी प्रकार इस प्रन्थ के प्रथम और द्वितीय बोल के सम्पादन में कानोड़ ( मेवाड़) निवासी सुश्रावक पं० श्रीयुत् पूर्णचन्द्रजी दक न्याय तीर्थ का सहयोग मुझे मुलभ रहा है। उनके विस्तृत शास्त्रीय ज्ञान और उनकी अनुशीलन-प्रिय विद्वत्ता का लाभ उठाने से प्रन्थ की उपयोगिता बढ़ गई है । अतः श्री पूर्णचन्द्रजी को उन के अमूल्य सहयोग के लिए धन्यवाद देना मेरा कर्तव्य है ।। पंजाब प्रान्त के कोट-इमा-खां निवासी श्रावक पं० श्यामलाल जी जैन, बी. ए., न्याय तीर्थ, विशारद का भी समुचित सहयोग रहा है । श्रीयुत भीग्बमचन्दजी सुराणा ने भी इस कार्य में सहयोग दिया है । अतः दोनों महाशयों को मेरा धन्यवाद है ।। श्रीमान पं० इन्द्रचन्द्र जी शास्त्री, शास्त्राचार्य, वेदान्त वारिधि, न्याय तीर्थ, वी. ए., ने इम ग्रंथ को पाण्डुलिपि का परिश्रम पूर्वक मंशोधन किया है । उनका अल्पकालीन सहयोग ग्रन्थ को उपयोगी, विशद और सामयिक बनाने में विशेष सहायक है। ____ उपरोक्त सजन सेठिया विद्यालय के म्नातक हैं। उन से इस नरह का सहयोग पाकर मुझे अपार हर्प हो रहा है । अपने लगाये हुए पौधे के फूलों की सुगन्ध से किस माली को हर्प नहीं होना ? ___ पुस्तक तय्यार होने के कुछ दिन पहले "श्री जैन वीराश्रम व्यावर" के स्नानक श्रीयुत पं० घेवर चन्द्र जी बाँठिया 'वीर पुत्र' जैन न्यायतीर्थ, व्याकरण नीर्थ, जैन सिद्धान्त शास्त्री का महयोग प्राप्त हुआ। उनके प्रयत्न से इम प्रन्थ का शीघ्र प्रकाशन मुलभ होगया । अतः उन्हें मेरा धन्यवाद है। श्रीमान पं० सच्चिदानन्द जी शर्मा साहित्य शास्त्री, ज्योतिर्विद का भी मैं अनुगृहीत हूँ। जिन्होंने इस प्रन्थ में आए हुए ज्योतिष सम्बन्धी बोलों का अवलोकन और उपयोगी परामर्श प्रदान किया है ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy