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________________ १३४ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला कमल जैसे जल और पंक में रहता हुआ भी उन से सर्वथा पृथक् रहता है । उसी प्रकार साधु मंमार में रहता हुआ भी निर्लिप्त रहता है। सूर्य जसे मब पदार्थों को मम भाव से प्रकाशित करता है। उमी प्रकार माधु भी धर्मास्तिकायादि रूप लोक का समान रूप से ज्ञान द्वारा प्रकाशन करता है। जैसे पवन अप्रतिबन्ध गति वाला है । उसी प्रकार माधु भी मोह ममता से दूर रहता हुआ अप्रतिबन्ध विहारी होता है। (अभिधान राजेन्द्र कोप भाग ६) ('समण' शब्द पृष्ठ ४०४ ) (दशवीकालिक अध्ययन २ टीका पृष्ठ ८) (आगमोदय समिति) (निशीथ गाथा १५४-१५७) (अनुयोगद्वार सामायिक अधिकार ) १७६-चार प्रकार का संयम (१) मन संयम (२) वचन संयम (३) काया संयम । (४) उपकरण मंयम । मन, वचन, काया के अशुभ व्यापार का निरोध करना और उन्हें शुभ व्यापार में प्रवृत्त करना मन, वचन और काया का संयम है । बहुमूल्य वस्त्र आदि उपकरणों का परिहार करना उपकरण संयम है। (ठाणांग ४ उद्देशा २ सूत्र ३१०)
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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