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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह (४) श्रोता का ख्याल रखते हुए मात नयों के अनुसार सूक्ष्म जीवादि तत्त्वों के कथन द्वारा अथवा दृष्टिवाद के व्याख्यान द्वारा नच के प्रति आकृष्ट करने वाली कथा दृष्टिवाद आक्षपणी कथा है। (ठाणांग ४ सूत्र २८२) ___ भाव तमः अर्थात् अज्ञानान्धकार विनाशक ज्ञान, मर्व विरति रूप चारित्र, तप, पुरुपकार और समिति, गुप्ति का उपदेश ही इस कथा का सार है। शिष्य को सर्व प्रथम आक्षेपणी कथा कहनी चाहिए आक्षेपणी कथा से उपदिष्ट जीव सम्यक्त्व लाभ करता है । (दशवकालिक नियुक्ति अध्ययन ३) १५५-विक्षेपणी कथा की व्याख्या और भेदः श्रोता को कुमार्ग से सन्मार्ग में लाने वाली कथा विक्षेपणी कथा है । सन्मार्ग के गुणों को कह कर या उन्मार्ग के दोषों को बता कर सन्मागे की स्थापना करना विक्षेपणी कथा है। (१) अपने सिद्धान्त के गुणों का प्रकाश कर, पर-सिद्धान्त के दोषों को दिखाने वाली प्रथम विक्षेपणी कथा है । (२) पर-सिद्धान्त का कथन करते हुए स्व-सिद्धान्त की स्थापना करना द्वितीय विक्षेपणी कथा है। (३) पर-सिद्धान्त में घुणाक्षर न्याय से जितनी बातें जिना गम सदृश हैं । उन्हें कह कर जिनागम विपरीत वाद के दोप दिखाना अथवा आस्तिक वादी का अभिप्राय
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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