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________________ १०६ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (३) भोजन की प्रारम्भ कथा-इतने जीवों की इसमें हिंसा होगी । इत्यादि आरम्भ की कथा करना आरम्भ कथा है। (४) भोजन की निष्ठान कथा-इस भोजन में इतना द्रव्य लगेगा आदि कथा निष्ठान कथा है। (ठाणांग ४ सूत्र २८२) भक्त कथा अर्थात् आहार कथा करने से गृद्धि होती है। और आहार विना किए ही गृद्धि आसक्ति से साधु को इङ्गाल आदि दोष लगते हैं । लोगों में यह चर्चा होने लगती है कि यह साधु अजितेन्द्रिय है । इन्होंने खाने के लिए संयम लिया है। यदि ऐसा न होता तो ये साधु आहार कथा क्यों करते ? अपना स्वाध्याय, ध्यान आदि क्यों नहीं करते ? गृद्धि भाव से पट जीव निकाय के वध की अनुमोदना लगती है । तथा आहार में आसक्त साधु एषणाशुद्धि का विचार भी नहीं कर सकता । इस प्रकार भक्त कथा के अनेक दोष हैं। (निशीथ चूणि उद्देशा १) १५१: देशकथा चार (१) देश विधि कथा (२) देश विकल्प कथा (३) देश छंद कथा (४) देश नेपथ्य कथा । देश विधि कथा-देश विशेष के भोजन, मणि, भूमि, आदि की रचना तथा वहां भोजन के प्रारम्भ में क्या दिया जाता है, और फिर क्रमशः क्या क्या दिया जाता है ? आदि कथा करना देश विधि कथा है।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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