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________________ दो शब्द *** "श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह" नामक ग्रन्थ का प्रथम भाग पाठकों के सामने रखते हुए मुझे विशेप हर्ष हो रहा है । इसे तय्यार करने में मेरा मुख्य उद्देश्य था आत्म-मंशोधन । वृद्धावस्था में यह कार्य मुझे चित्त शुद्धि, आत्म-सन्नोप और धर्मध्यान की ओर प्रवृत्त करने के लिए विशेष सहायक हो रहा है । इसी के श्रवण, मनन और परिशीलन में लगे रहना जीवन की विशेष अभिलाषा है । इसकी यह आंशिक पूर्ति मुझे असीम आनन्द दे रही है । ज्ञान प्रसार और पारमार्थिक उपयोग इसके आनुपंगिक फल हैं। यदि पाठकों को इससे कुछ भी लाभ हुआ तो मैं अपने प्रयास को विशेष सफल सम. गा । प्रस्तुत पुस्तक मेरे उद्दिष्ट प्रयास का केवल प्रारम्भिक अंश है । इस प्रथम भाग में भी एक साल का समय लग गया है। दूसरा भाग भी शीघ्र ही प्रकाशित करने की अभिलापा है। पाठकों की शुभ कामना का बहुत बड़ा बल अपने साथ लेकर ही मैं इस कार्यभार को वहन कर रहा हूँ । बीकानेर वूलन प्रेस के सामायिक भवन में इस सद्विचार का श्रीगणेश हुआ था और वहीं इसे यह रूप प्राप्त हुआ है । उद्देश्य, विपय और वातावरण की पवित्र छाप पाठकों पर पड़े विना न रहेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। ___ संवत् १६७२ तथ १६७E में 'छत्तीस बोल संग्रह' नामक ग्रन्थ के प्रथम भाग और द्वितीय भाग क्रमशः प्रकाशित हुए थे । पाठकों ने उन संग्रहों का यथोचित आदर किया । अब भी उनके प्रति लोगों की रुचि बनी हुई है । वे संग्रह ग्रन्थ भी वर्षों के परिश्रम का फल थे, और अनेक
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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