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________________ १०० श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला (१) माया:-अर्थात् कुटिल परिणामों वाला-जिसके मन में कुछ हो और बाहर कुछ हो । विपकुम्भ-पयोमुख की तरह ऊपर से मीठा हो, दिल से अनिष्ट चाहने वाला हो । (२) निकृति वाला:-दोग करके दूसरों को ठगने की चेष्टा करने वाला। (३) झूठ बोलने वाला। (४) स्टे ताल झंटे माप वाला । अर्थात् खरीदने के लिए बड़े और बेचने के लिए छोटे तोल और माप रखने वाला जीव तिर्यञ्च गति योग्य कर्म वान्धता है। (ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३७३) १३४-मनुष्य आयु बन्ध के चार कारण:-- (१) भद्र प्रकृति वाला। (२) स्वभाव से विनीत । (३) दया और अनुकम्पा के परिणामों वाला। (४) मन्मर अर्थात् ईर्षा-डाह न करने वाला जीव मनुष्य आयु योग्य कर्म बाँधता है। (ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३७३) १३५-देव आयु बन्ध के चार कारण:-- (१) मगग मंयम वाला। (२) देश विगति श्रावक । (३) अकाम निर्जग अर्थात् अनिच्छा पूर्वक पराधीनता आदि कारणों से कर्मों की निर्जरा करने वाला ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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