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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १२२ -- पिता के तीन अंग-सन्तान में पिता के तीन अंग होते है अर्थात् तीन अंग प्रायः पिता के शुक्र ( वीर्य ) के परिणाम स्वरूप होते हैं । ८० (१) अस्थि (हड्डी) (२) अस्थि के अन्दर का रम (३) सिर, दाढ़ी, मंत्र, नख और कुक्षि आदि के बाल, ( ठाणांग ३ सूत्र २०६ ) १२३ - - माता के तीन अंगः -- सन्तान में माता के तीन अंग होते है । अर्थात् ये तीन अंग प्रायः माता के रज के परिणाम स्वरूप होते हैं । (१) मांस (२) रक्त (३) मस्तु लिङ्ग ( मस्तिष्क ) (ठाणांग ३ सूत्र २०६ ) १२४ - - तीन का प्रत्युपकार दु:शक्यः है (१) माता पिता ( २ ) भर्ता (स्वामी) (३) धर्माचार्य 1 इन तीनों का प्रत्युपकार अर्थात् उपकार का बदला चुकाना दु:शक्य है। माता पिता:- कोई कुलीन पुरुष सबेरे ही सबेरे शतपाक, सहस्रपाक जैसे तैल से माता पिता के शरीर की मालिश करे । मालिश करके सुगन्धित द्रव्य का उबटन करें । एवं इम के बाद सुगन्धी, उष्ण और शीतल तीन प्रकार के जल से स्नान करावे । तत्पश्चात् सभी अलंकारों से उन के शरीर को भूषित करे | वस्त्र, आभूषणों से अलंकृत कर मनोज्ञ, अठारह प्रकार के व्यञ्जनों सहित भोजन करावे और इम के बाद उन्हें अपने कन्धों पर उठा कर फिरे । यावजीव ऐमा
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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