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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (३) देवों और असुरों में संग्राम हने पर सारी पृथ्वी चलित होती है। (ठाणांग ३ उद्देशा ४ सूत्र ११८) ११८-अंगुल के तीन भेदः (१) आत्मांगुल (२) उत्सेधांगुल (३) प्रमाणांगुल । आत्मांगुल:-जिस काल में जो मनुष्य होते हैं। उनके अपने अंगुल को आत्मांगुल कहते हैं । काल के भेद से मनुष्यों की अवगाहना में न्यूनाधिकता होने से इस अंगुल का परिणाम भी परिवर्तित होता रहता है । जिस ममय जो मनुष्य होते हैं उनके नगर, कानन, उद्यान, वन, तड़ाग. कूप, मकान आदि उन्हीं के अंगुल से अर्थात् आत्मांगुल ले नापे जाते हैं। उन्सेधांगुलः-पाठ यवमध्य का एक उत्सेधांगुल होता है । उत्सेधांगुल से नग्क, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवों की अय गाहना नापी जाती है। प्रमाणांगुलः यह अंगुल सब से बड़ा होता है । इस लिए इस प्रमाणांगुल कहते हैं । उत्सेधांगुल से हजार गुणा प्रमाणां गुल जानना चाहिये । इस अंगुल से रत्नप्रभादिक नरक, भवनपतियों के भवन, कल्प, वर्षधर पर्वत, द्वीप आदि की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई, और परिधि नापी जाती है । शाश्वत वस्तुओंके नापने के लिए चार हजार कोस का योजन माना जाता है । इसका कारण यही है कि शाश्वत वस्तुओं के नापने का योजन प्रमाणांगुल से लिया जाता
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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