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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह अभिमान किया । प्राप्त भोग सामग्री में मूर्छित रहा । एवं अग्रास भोग सामग्रो की इच्छा करता रहा। इस प्रकार मैं शुद्ध चरित्र का पालन न कर सका। उपरोक्त तीन बोलों का विचार करता हुआ देवता पश्चा ताप करता है। ११३-देवता के च्यवन-ज्ञान के तीन बोल: (१) विमान के आभूषणों की कान्ति को फोकी देखकर (२) कल्पवृक्ष को मुरझाते हुए देख कर (३) तेज अर्थात् अपने शरीर की कान्ति को घटने हुए देखकर देवता को अपने च्यवन (मरण) के काल का ज्ञान होजाता है (ठाणांग ३ उद्देशा ३ सूत्र ७६) ११४-विमानों के तीन आधार: (१) धनोदधि (२) घनवाय (३) आकाश । इन तीन के आधार से विमान रहे हुए हैं । प्रथम दो कल्प-सौधर्म और ईशान देवलोक में विमान घनोदधि पर रहे हुए हैं । सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में विमान धनवाय पर रहे हुए हैं। लान्तक, शुक्र और सहस्रार देवलोक में विमान घनोदधि और धनवाय दोनों पर रहे हुए हैं । इन के ऊपर के आणत, प्राणत आरण, अच्युत, नव प्रवेयक और अनुत्तर विमान में विमान आकाश पर स्थित हैं। (ठाणांग ३ सूत्र १८०) ११५-पृथ्वी तीन वलयों से वलयित है । एक एक पृथ्वी चारों तरफ दिशा विदिशाओं में तीन वलयों से घिरी हुई है।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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