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________________ . श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (३) तीसरे मनोरथ में साधुजी यह चिन्तवन करें कि कब वह शुभ समय आवेगा जब मैं अन्त समय में संलेखना स्वीकार कर, आहार पानी का त्याग कर, पादोपगमन मरण अङ्गीकार कर, जीवन-मरण की इच्छा न करता हुआ विचरूँगा। इन तीन मनोरथों की मन, वचन, काया से चिन्तवना आदि करता हुआ साधु महानिर्जरा एवं महापर्यवमान (प्रशस्त अन्त ) वाला होता है। __(ठाणांग ३ उद्देशा ४ सूत्र २१०) १०-वैराग्य की व्याख्या और उसके भेदः पांच इन्द्रियों के विषय भोगों से उदासीन-विरक्त होने को वैराग्य कहते हैं । वैराग्य के तीन भेदः(१) दुःखगर्भित वैगग्य ( २ ) मोहगर्भित वैराग्य (३) ज्ञानगर्भित वैराग्य । दुःखगर्भित वैराग्यः-किसी प्रकार का संकट आने पर रिक्त होकर जो कुटुम्ब आदि का त्याग किया जाता है । वह दुःखगर्भित वैराग्य है । यह जघन्य वैराग्य है। मोहगर्भित वैराग्यः इष्ट जन के मर जाने पर मोहवश जो मुनि व्रत धारण किया जाता है । वह मोहगर्भित वैराग्य है। यह मध्यम वैराग्य है। ज्ञानगर्भित वैराग्यः-पूर्व संस्कार अथवा गुरु के उपदेश से आन्म-ज्ञान होने पर इस असार संसार का त्याग करना ज्ञानगर्भित वैराग्य है । यह वैराग्य उत्कृष्ट है। (कर्त्तव्य कौमुदी दूसरा भाग पृष्ठ ७१ श्लक ११८-११६ वैराग्य प्रकरण द्वितीय परिच्छेद)
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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