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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ६१ तदुभयागमः --सूत्र और अर्थ दोनों रूप आगम को तदुभयागम कहते हैं। (अनुयोगद्वार सूत्र १४३) आगम के तीन और भी भेद हैं: (१) आत्मागम (२) अनन्तरागम (३) परम्परागम । आत्मागमः - गुरु के उपदेश विना स्वयमेव आगम ज्ञान होना आत्मागम है । जैसे:- तीर्थकरों के लिए अर्थागम आत्मागम रूप है और गणधरों के लिए सूत्रागम आत्मागम रूप है अनन्तरागमः --- स्वयं आत्मागम धारी पुरुष से प्राप्त होने वाला श्रागमज्ञान अनन्तरागम है । गणधरों के लिए अर्थागम अनन्तरागम रूप है । तथा जम्बूस्वामी आदि गणधरों के शिष्यों के लिए सूत्रागम अनन्तरागम रूप है । 1 परम्परागमः - साक्षात् आत्मागम धारी पुरुष से प्राप्त न होकरं जो आगम ज्ञान उनके शिष्य प्रशिष्यादि की परम्परा से आता है वह परम्परागम है । जैसे जम्बूस्वामी आदि गणधर - शिष्यों के लिए अर्थागम परम्परागम रूप है । तथा इनके पश्चात् के सभी के लिए सूत्र एवं अर्थ रूप दोनों प्रकार का आगम परम्परागम है । (अनुयोगद्वार प्रमाणाधिकार सूत्र १४४ ) ८४ - पुरुष के तीन प्रकार : (१) सूत्रधर (२) अर्थधर (३) तदुभयधर । सूत्रधर:- सूत्र को धारण करने वाले शास्त्र पाठक पुरुष को सूत्रधर पुरुष कहते हैं ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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