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________________ ५२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला जोड़े से जन्म लेते हैं । इसलिए इन्हें जुगलिया भी कहते हैं । अन्तर द्वीपिक:-- लवण समुद्र में चुल्ल हिमवन्त पर्वत के पूर्व और पश्चिम में दो दो दाढ़े हैं । इसी प्रकार शिखरी पर्वत के भी पूर्व और पश्चिम में दो दो दाढ़े हैं। एक एक दादा पर सात सात द्वीप हैं । इस प्रकार दोनों पर्वतों की आठ दाड़ों पर छप्पन द्वीप हैं । लवण समुद्र के बीच में होने से अथवा परस्पर द्वीपों में अन्तर होने से इन्हें अन्तरद्वीप कहते हैं । अकर्म भूमि की तरह इन अन्तरद्वीपों में भी कृषि, वाणिज्य आदि किसी भी तरह के कर्म नहीं होते । यहां पर भी कल्पवृक्ष होते हैं । अन्तरद्वीपों में रहने वाले मनुष्य अन्तरद्वीपिक कहलाते हैं । ये भी जुगलिया हैं । ( ठाणांग ३ उद्देशा १ सूत्र १३० ) 1 ( पन्नवरणा प्रथम पद ) ( जीवाभिगम सूत्र ) ७२ - कर्म तीन: (१) असि (२) ममि (३) कृषि | असिकर्म:- तलवार आदि शस्त्र धारण कर उनसे आजीविका करना अकर्म है । जैसे सेना की नौकरी । मसिकर्म : -- लेखन द्वारा आजीविका करना मसिकर्म है । कृषिकर्म :- खेती द्वारा आजीविका करना कृषिकर्म है । ( अभिधान राजेन्द्र कोष भाग १ पृष्ठ ८४६ ) ( जीवाभिगम प्रतिपति ३ उद्देशा ३ ) (तन्दुल क्याली पयन्ना )
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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