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________________ ५० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला नोट:-इन तीनों, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, और नपुसकवेद का स्वरूप समझाने के लिए क्रमशः करीषाग्नि (छाणे की आग) तृणाग्नि और नगरदाह के दृष्टान्त दिये जाते हैं। (अभिधान राजेन्द्र कोप भाग ६ पृष्ठ १४२७) (वृहत्तकल्प उद्देशा ४) (कर्मग्रन्थ पहला भाग) ६६-जीव के तीन भेदः ( १ ) मंयत ( २ ) अमंयत ( ३ ) मंयतामयत । संयतः-जो म मावद्य व्यापार से निवृत्त हो गया है । ऐसे ऋठे से चौदहवे गुणस्थानवी, और सामायिक आदि मंयम वाले माधु को मंयत कहते हैं। अमयत:-पहले गुणस्थान से लेकर चौथे गुणस्थान वाले अत्रि गति जीव को असंयत कहते हैं। भंयतामयनः--जो कुछ अंशों में तो विरति का सेवन करता है और कुछ अंशों में नहीं करता ऐसे देशविरति को अर्थात् पञ्चम गुणस्थानवर्ती श्रावक को संयतामयत कहते हैं। (भगवती शतक ६ उद्देशा ३) ७०-वनस्पति के तीन भेदः(१) मंग्व्यात जीविक ( २ ) असंख्यात जीविक (३) अनन्त जीविक। संख्यात जीविक:-जिस वनम्पति में संख्यात जीव हों उसे संख्यात जीविक वनस्पति कहते हैं । जैसे नालि से लगा हुआ फूल।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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