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________________ २६८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab Closign | जिन गुण करण आरभ हास्य कोधाम है। वायस का नहिं सिंधु तारण को काम है। इति श्री सिद्धचक्रपाठभापा समाप्तम् । संवत् १९६४ फाल्गुन शुक्ल ६ लिखितम् ॥ Colophon १९८२. सिद्धचक्र-पूजा Opening • Closing । अरिहत पद ध्यातो थको दवह गुण परजाय रे । भेद छेद करि आत्मा अरिहतम्पी थाय रे ॥ योग असख्य ते जिण कह्या नव पद मोक्ष ते जाणो रे । एह तणे अविलवन आतम ध्यान प्रमाणो रे । २१ वी० ॥ अनुपलब्ध । Colophon १६८३. सिद्धक्षेत्र-पूजा Opening • वदी श्री भगवानकू भावभगत सिरनाय । पूजा श्री निर्वान की सिद्धक्षेत्र सुखदाय ॥ Closing : सवत् अष्टादश सही सत्तर एक महान । भादी कृष्ण जु सप्तमी पूरन भयो सुजान " Colophon, . इति श्री सिद्धक्षेत्र पूजा समाप्तम् । १९८४. सिद्धक्षेत्र-पूजा Opening श्री आदीश्वर वदौ महान, कैलास सिखर ते मोक्ष जान । चपापुर ते श्री वासप्ज, तिन मुकति लही अति हरपि हूज ॥१॥ Closing : Colophon . देखें, क. १९८३ । इति सिद्धक्षेत्र पूजा।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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