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________________ २.४ श्री जैन सिद्धान्त भवन अन्यावली Shri Devakumar Jain Oriental Lib ary, Jamn Sidhhant Bhavan, Arrah १९३५ सम्मेदशिखर-पूजा - Opening : गिरपम्मेर बीन जिनेश्वर सिव गए, अवर अतपित मुनि तहा ते सिद्ध भए । वदौ मन वच काय नमी सिर नायक, तिष्ठौ श्री महाराज सवै इति आयकै ॥ ए वीस जिनेश्वर नमित सुरेश्वर नित मधवा पूजन आवै। नर नारी घ्यावे सो सुख पाव रामचन्द्र जिन सिर नावै ॥११॥ इति सम्मेदशिव र पूजा सम्पूर्णम् । Closing : Colophon: १६३६. सम्मेदशिखर-पूजा Opening : Closing परमपूज्य जिन वीम जहाँ ते शिव लये, ओरहु बहुत मुनीश शिवाल सुखमये । असे श्री सम्मेद शिखर नमिहू मुदा, दरव साजि शुचि रूचि युत पूज रचो सदा ॥ जय एक वार वदे जु कोय तसु नर्क तिर्य च कुगत न होय । इत्यादि घनी महिमा अपार प्रणमो मनवचकर सीसधार ।। 'इति'। देखे, ज. सि० भ० प्र० 1, ०६४३ । Cclop' on । १६३७ सम्मेदशिखरज Opening : सिद्धक्षेत्र तीरथ परम, है उत्कृष्टसुखयान । शिखर समेद मदानमो होई पाप की हान ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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