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________________ २३५ Catalogue of Sinskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhana) Closing तिहु जग भीतर श्री जिन मदिर बने अकीर्तम महासुखदाय, नर सुर खग कर वदनीक जे तिनको भवि जन पाठ कराय । धन धन्यादिक सपति तिनके पुत्र पौत्र सुसोहत भलाय चक्री सुरषग इन्द्र होय के करमना स सिवपुर सुषथाय । Colophon • इति श्री तीन लोक सबधी पूजा सपूर्णम् । विशेप--इसमे सेठसुदर्शन पूजा तथा तीन लोक सन्धी पूजा भी सक लित है। १७७३. गिरनारपूजा Opening : Closing . देखे, ऋ० १७७२ । जैसवाल वर नित नैन सुख श्रावग ग्यानी । रामरतन सु पुत्र भयो धर्मामृत पानी ।। इति श्री गिरनार जी की पूजा सपूर्णम् । मीति फाल्गुन सुदी ३ । मदवासरे। लीखित जूनागढ श्री मदिर जी कापेया आनद जी। Colophon १७७४. गिरनारपूजा Opening : देखे, ऋ० १७७२ । Closing : - जे नर वंदत भाव धर सिद्धक्षेत्र गिरनार । पुत्र पौत्र सपति लहि पूरन पुण्य भडार ।। Colophon : इति श्री गिरनार जी की पूजा सम्पूर्णम् । मिति आपाढ सुदी ७ चित्रा नक्षत्र पहला पहर रात्रि वियं ५३३ ॥ मुनि के साथ श्री नेमनाथ जी उर्जयत टोक से जा जू नागढ गिरनार परवत पर है, सोरठ देश गुजरात मे मुक्त पधारे। नेमपुराण से देखना। विशेष - इसमे नीचे चार-पांच सोरठे भी लिखे गये है।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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