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________________ २१५ Catalogue of Sanskrit, Praktit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhana) Colophone इति वीस तीर्थकर की जयमाल सपूर्णम् । १७०५. चन्द्रप्रभुपूजा Opening । सुभ अतिसय चउतीस प्रतिहारज अधिकाही । अनतचतुष्टययुक्त दोष अष्टादस नाही ॥ अह्वानन विधि कहूँ नाय सिध सुध करि मनही । लोक मोह तम हरत दीप अद्भ त ससि जिनही । वसुद्रव्य ले सुधभावतै जजू तिहारे पाय । देह देव शिव मुझ अवै अही चददुतिराय ॥१४॥ इति श्री चद्रप्रभु जी की पूजा सम्पूर्णम् । Closing : Clolophon: १७०६. चन्द्रप्रभुपूजा Ope Closing : वरचरित चार गुन अकलधार भवपार वसे हैं । हे त्रिजगतार सहज ही उदार शिवनार रस है ।। चद जिनन्द जजन्त तन्त सुख सेवति होई । चद जिनन्द जजन्त निराकुल दद न कोई ।। चद जिनन्द जजन्त चहन्त सबै मिलि जावै । चद जिनन्द जजन्त अजित नित हर्ष वढावै ॥ इति श्री चन्द्रप्रभोजिनदेव की पूजा सम्पूर्ण । Colophon: १७०७ चारित्रपूजा Opening देवश्रुतगुरुनत्वा कृत्वा शुद्धिमिहात्मनः । सम्यक वारिप-रत्नम्य वध्ये सक्षेपतोर्चनम् ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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