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________________ २१२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab १६६४. भैरो- राग Opening : Closing Colophon : Opening : Closing : Colophone : Opening : Closing 1 Colophon ; 1 भली कीनी भौर भयं । आए हो भवन हमारे, भली कीनी ये ॥ आस करें उरगदास, नाथ चरण तुम्हारे || भली० ॥ इति भैरौ । १६६५. बीस-तीर्थं कर-अर्ध्य श्री मंदिर आदि जिनद बीसो मुखकारी । सुविदेह माँहि अभिनद पूजत नरनारी ॥ थिति समवसरन के मांहि त्रिभुवन जनं तारक । हम पूज अर्ध चढाय आनन्द के कारक || इह वर्तमान सुखकर दक्षिण देस महा, तह श्री गुर सुगुन भडार राजन हे सुमहा । वसुदेव जथो चितल्याय हे त्रिभुवन स्वामी, हय पूजन पद सिरनाय कीजे सिवगामी ॥१॥ इति । १६६६• बीस विरहमान पूजा पूर्वापर विदेहेषु विद्यमान जिनेश्वरा । स्थापयामि अहमत्र सुद्ध सम्पक्त्तहेतवे ॥१॥ श्रीमदिरा दिप देवमजितवीर्यमुत्तमम् । भूयात् भव्यमता सौप्य स्वर्गमुक्तिसुखप्रदम् ॥ इति श्री वीनविरहमान पूजा जयमाल सम्पूर्णम् ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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