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________________ १६८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah, Opening Closing : Colophon. Opening : Closing Colophon : Opening : Closing Colophon : १६४५ विनती श्रीपति जिनवर करुणायतन दुखहरण तुम्हारा वाना है। मोहि देहु विमल कल्याना है ॥ मत मेरी वार अवार करो, हो दीनानाथ अनाथ हि इति विनती सम्पूर्णम् । १६४६. विनती प्रभु आज हमारी बारी है । ॥ टेक ॥ चलो रे मनवा मागीतु गी दर्शनकरस्या प्रभु जी का । सिद्धक्षेत्र की करो वदना दुख टलि जावै दुरगति का ॥ विषम घाट पहाड विच परवत ऊंचा मांगीतु गी का । इम पर मुनिवर मुक्ति गया है कोड निन्यानव गिनती का ॥ चलो रे ॥ उगणीस की साल जेठ सुदि करी जातरा पचसका । हरकत कहै सुद्ध भाव सों मेरो चरण जिनेश्वर का । चलो । 119311 इति मागीगी की विनती सपूर्णम् । १६४७. विनती तुम तरणतारण भवनिवारण भविक मैन आनन्दनम् । श्री नाभिनंदन जगत वेदन आदिनाथ निरंजनम् ॥ मैं अधीन परवस पर विके तुम्हारे हाथ । इतनी करिको जानिये लाख बात की बात | इति श्री विनती मपूणम् ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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