SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११५ Hindi Manuscrripts Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & (Stotra) समाप्ता। इति श्री योगचितामणि शास्त्र समाप्ता। सूत्रार्थ मिलिनेन ग्रथमान ६५०० सवत् रामगणोदधितू प्रमिते सवत् १७६४ वर्षे मार्गशीर्षमासे कृष्णपक्षे तिथी एकादश्या सोमवारे लिखितम् । पूज्य श्री ऋशि स्थिवीर जी श्रीगणेश जी पूज्य आर्या जी श्री राजो जी लिखितम् । देखे, जै० सि० भ० प्र० I, ऋ० ५९६ । १३६० यूनानी चिक्त्सिा Opennig Cosing • विधन विघ्न) विनासन देवकू', प्रथम करु परनाम ॥१॥ हरताल ३ अरद ८ दिरम मुर्ष ८ दिरम, करूरुवाई ८ दिरम माजू २० दिरम, जगार ४ दिरम, कुट ३ दिरम, फटकडी ४ दिरम, अकाकिया २।। दिरम, गुलनार ३ दिरम कूट छान के बीच सिरके के गलावै २ हप्ते वीच धूप के रखे बाद कर्श करें। नही है। Colophon . १३६१. आचार्य-भक्ति Opening Closing : सिद्धगुणस्तुतिनिरता उद्भू तरूपाग्निजालबहुलविशेषान् । गुप्तिभिरभिसपूर्णान् मुक्तियुत सत्यवचनलक्षितभावान् ।। इच्छामि भते आयरिय भक्तिकाउस्सग्गोकर तस्सालोचेउ सम्मणाण सम्मदमणसम्मचरित्त जुताण, पचविहाचाण्ण आयरियाण आयाराटिसुदणाणो वदेसियाण उवझायाण तिरयणगुण पालणरयाण सव्वसाहूण णिच्चकाल अच्चेमि, पूज्जेमि वदामि । सुगइगमण समाहिम ण जिणगुणसम्पनि होउ मज्झ ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy