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________________ ११३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhrainsa & Hindi Manuscripts ( Ayurveda ) Closing नित्यज्वरवालाने दीजे पाडी का मूत्रसू ने जरावा नाने दीजै निवकार ससू चोयावालाने दीजे इति सर्वज्वर जाय । इति मगलरूप सपूर्णम् । शुभ भूयात् । Colophon: १३५५ शारदा-तिलक सटीक Opening । Closing । श्री तीर्थेश जिनाधीश केवलज्ञानभास्करम् । प्रणम्याभ्युदये ध्यात्वा वक्षे मूत्रपरीक्षणम् ॥१॥ पानट २ सुपेदकथट २ अफीमट १ इकत्र कर गोली करनी मासे १ प्रमाण तदलोदकेन समीप अतिसार जाहि । इति श्री सारदातिलक अथ समाप्तम् । लिखितमिद नित्यानन्दन नारनौल मध्ये लिखायत पडितजी श्री चेतनदास जीकस्मिन्सम्वत्मरे सवत् १६७६ का० वर्षे कार्तिक शुक्ल २ गुरुवासरे अलिखदिद पुस्तक यथा स्यात् तथा । श्रीरस्तु Clolophon Opening ! १३५६ सारंगधर सहिता श्रिय सदद्याद्भवता पुरारिर्यदंगतेज प्रसरे भवानी। विराजते निर्मलचन्द्रिकाया महौषधीव ज्वलिता हिमाद्रौ ॥१॥ विविमगदाति दरिद्रया' नाशन याहग्निमपि चकार वियोगरत्नः । विलसतु शारगधरस्य सहिता सा कविहृदयेषु सरोजनिर्मलेपु ॥ इति श्री दामोदरसूनुना शारङ्गधरेण विरचिताया सहिताया चिकित्सास्थाने नेत्रप्रसादनकर्मविधिरध्याय समाप्तोयमुत्तर खडा Closing . Colophon : १३५७ वैद्यभूषण Opening । सिव सुत पद प्रणमित सदा रिद्ध सिद्ध नित देइ । कुमति पिनासन मुमतकर मगन नुक्त करेइ ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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