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________________ १० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Shri Devakumar lain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah, Closing Colophon : रेवा सहर मनोग वमै श्रावग भव्य सव । आदित्य ऐश्वर्ययोग नृतीय पहर पूरण भयो ॥३७॥ . इति श्री सम्मेद शिखरमहात्म्ये लोहाचार्यानुसारेण भट्टारक श्री जगत्कीति तच्छिष्य लालचद विरचिते सुवरवरकूटवर्णनो नाम एकविशतिम सर्ग. समाप्त । सम्पूर्णमिति । मम्वत् अष्टादश शतक वानवे अधिक सुजान । फाल्गुन कृष्ण अष्टमी वुधे पूरण भये गुणखान ॥ ॥ रघुनाथ दूज के लिखे भव्यन के धर्म काम । वाचे सुनै मर्द है पावै सर्व सुखधाम ।। दोहे - १२८४ शिखरमाहात्म्य Opening : Closing . अजितनाथ सिद्धवर कूट। अस्सी कोडि एक अरव चौवन लाख मुनि सिद्ध भय बतीस कोटि उपास का फल इम कूट के दर्शन का फल है। पार्श्वना सुवर्ण भद्रकूट। सम्मेदशिखर सुवर्ण कूट ते पार्श्वनाथ जिनेद्रादि मुनि एक करोड चौरासी लाख पैतालीस हजार सात सौ व्यालीस मुनि सिद्ध भये इस कूट के दर्शन ते सोरा करोड उपास का फल है। अनुपलब्ध । Colophon: १२८५. सोलहकारणरासा Opening : Clos वीर जिनेस्वर नमसकरी ... • " जहाँ हेमप्रभ धन यसा ॥१॥ सकलकिरत ए रासा कीयौ ए सोलह कारण । पढे गुण जे समलै तिण शिव सुहकारण ॥७॥ इति सोलहकारण रासा जी समाप्तम् । Colophon:
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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