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________________ Catalogue of Sinskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Rasa-Chanda - Alankāra kāvya ) Closing : Colophon : दोहा -- अपर च - Opennig Closing Colcphon : Opening : Closing ८५ रूपक घनाक्षरी मे गुर लघु नियमन वतिस वरन वर रचिये चरन चारि । की विसरामतित आठ आठ अक्षर पे अत एक लघु नौ नियम करि करि धारि । या विधि सरस भाग गुण गुरु सेसनाग कीनो कविराजनि के काज बुद्धि के विचारी ॥ भाषा सिंधु तरिवेको आधे छद करिवेको पिंगल बनायो पढिये से सुद्र के सुरि ।" इति श्री कवि विनोद मुरलीधर श्रीधर कृतो वर्नवृत्त परिच्छेदोनाम पोडसमो विनोद | वीरगा पत्या पत्य रस रस वसु ससिवामक 1 सुभ भद्रा सित पक्ष दिन अगारक मतिवक ||१|| तिथित निदुभ पुनर्वसुवेला लाभ विराजु । राम सहाय लिखितमिद पिंगलग्रथ सुमाजु || २ || इति श्री पिंगल समाप्तम् । शुभम् अस्तु । १२६६. राजुल पचीसी प्रथम सुमरी अरिहत देव सो विनती करी ॥ यह लाल विनोदी गावै सुनत सव जन गहवरे राजुलपति श्री नेमि जिन सव सघ को मगल करे |२६|| इति श्री राजुल पचीसी जी समाप्तम् । ... देखे, रा० सू० III, पृ० ८५, १३१, १४६ । १२७० राजुल पचीसी देखें, क्र० १२६ε| देखे, ऋ० १२६९ |
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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