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________________ ७६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Rasa-Chanda-Alankāra-etc) Closing: जे नर आप घात कर मरी होइ तिरजच चिह गति फिरी। संमारा दुख भोगवो दिख आपु धनुरी पाई · · ॥ अनुपलब्ध। रा० सू० III, पृ० १४१, Colophon: १२५०. जकड़ी Opening : Closing : अब मन मेरे वे सुनि सुनि सिख सयानी । जिनवर चरनो के करि फरि प्रीत सज्यानी ॥ धन्य धन्य सतगुर के नायक सब सुखदायक तिहपन में। जिन सो समझ परी सव भूदर सदा सरन इस भाव वन में॥ इति सिस्य जकड़ी सपूर्णम् । Colophon: १२५१. जोगीरासो Opening | Closing : आदि पुरुष जो आदिज गोत्तमु, आदि जति आदिनाथो । आदि जगत गुरु जोग पयासिउ जय जय जय जगनाथो । योगीय रसौ सिखहु रे श्रावग दोसुण को लीज । जो जीनदास हत्रि विधि हिए सिद्धह सुमिरणु कीजै ॥४२॥ इति जोगीगसु समाप्ता। - - रा० सू० III, पृ० १६५ । Colophon! १२५२ कवित्त श्री जिनगज गरीबनेवाज सुधारन काज सर्व सुखदाई। दीनदयाल बडे प्रतिपाल दया गुनमाल मदा सिरनाई ॥ दुरगति टारन पाप निवारन हो भवतारन की भवताई। पारवार पुकार करौ जन की विनती सुनिए जिनराई ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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