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________________ ४८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab. Colophon: इति सुखबोधार्थमालापद्धतिः । श्री देवसेनपडितविरचिता नयचऋपरिसमाप्ताः। ११४७. नयचक्र Opening : Closing ! Colophon: देखें, ऋ० ११४६ । देखें, ऋ० ११४६ । इति सुखवोधार्थमालापद्धति श्री देवसेनपडिन विरचिता । इति श्री नयचक समाप्तम् ३०६ श्लोक अनुष्टुप निश्चयेन । इति श्री। ११४८ नयचक्र वचनिका Opening : Closing : वदो श्री जिन के वचन स्यादवाद नयमूल' । ताहि सुनत अनुभव तहाँ है मिथ्या निरमूल ॥१॥ सत्रह में छबीर के सवत् फाल्गुन मास । उजनी तिथि दशमी जहाँ कीनो वचन विलाम ।। इति श्री नातयगदास हेमराज कृत नयवक वनिका समाप्तम् । देखें,०सि० भ० ग्र० I, ऋ० २६६ । Colophon . ११४६. नयचक्र वचनिका Opening ! Closing • Colophon: देखे, ऋ० ११४८ । देखें, ऋ० ११४८ । इति श्री नयचक्र पंडिन नरायनदाय उपदेशशिष्य हेमराज कृत सामान्य वनिका सपूर्णम् । इति श्री नयचक्र जी की वचन का सम्पूर्णम् । मिति ज्येष्ट वदि ६ । वुधवार । संवत् १९६२ मुा। चंदेरी।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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