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________________ ३८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : ....... विरुद्ध भावटाली करी साचो सूत्र भाव कस्यो छइ जिणइ॥ इति धर्मार्धा पव्वतनु वालावोधे द्रव्यसग्रह सूत्र समाप्तम् । १११७. द्रव्यसग्रह Colophon: Opening! तहाँ प्रथम या ग्रथ की पीठिका अमे जो या ग्रथ मे तीन अधिकार है तहाँ पहिला तो पटद्रव्यपचास्तिकाय की प्ररूपणा का अधिकार है तहाँ आदिगाथा तो मग अर्थ है नहाँ एक गाथा उक्त च सव इद्र के सख्या का है। । मगल श्री अरहत वर मगल सिधि सुसूरि ॥ उपाध्याय साधु सदा, करो पाप सव दूरि ॥१॥ इति श्री द्रव्यसग्रह ग्रथ समाप्ता.। Closing : Colophon: १११८. द्रव्यसग्रह Opening : Closing • Colophon: देखें, ऋ० १११२ । देखे, ऋ० १११२ । इतिद्रव्यसग्रहसूत्र समाप्तम् । १११९. द्वादशानुप्रेक्षा Opening : Closing : Colophon! जिणवर भासि .. - सुणऊ जीव सुलक्षणा ॥१॥ ......... रयणत्तय गुणु ।। इति द्वादशानुप्रेक्षा समाप्ता। ११२०. ईर्यापथ सामयिक Opening ! ॐ नि सगोह जिनानां सदनमनुपम त्रीपरीत निभक्त्या, स्थित्वागत्वानिषिद्य चरणपरिणतोत्र सनेहम्तयुग्मम् ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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