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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhrama & Hindi Manuscripts (Purâna Carita, Katha ) १०८०. बारह भावना Opening. Closing । भादिदेव जिनपें नमो, वदो गुरु के प य । परनौ बारह भावना सुनऊ चतुर चित लाय ॥१॥ जहाँ सवर तहाँ निर्जरा, जहाँ आयव तहाँ वध । इसनी कला विवेक की और बात सवध ॥१५॥ इति । Colophon १०८१. बीस तीर्थ कर नामावली Clesing | अक्षरमात्र पदस्वरहीन व्यजनसधिक्विजितरेफम् । साधुभिरय मम क्षन्तव्य को न विमुह यति शास्त्रसमुद्र । नियमप्रभ जी, वीरसेन जी, महाभन जी, जयदेव जी, अजीतवीर्य जी ॥२०॥ इति श्री वीसतीर्थ कर के नाम सपूरण । इमी मे भविष्यत चौवीसी भी अन्तर्भूत है। Colophoni विशेष-- १०८२. ब्रहम विलास Opening प्रथम प्रणमि अरिहंत वहुरि श्री सिद्ध नमिज । आचारिज उवज्झाय तासु पदघदन किज्ज । साधु सकल गुणवंत सतमुद्रा लखि दी। श्रावक प्रतिमा धरन चरन नमि पाप निकदी। सम्यत्कवत स्वसुभावधर जीव जगत महिंहो । जित तित नित त्रिकाल बदत भविक भाव सहित सिर नाईनित ॥१॥ बहुत वात कहिये कहायनी यह जीव त्रिभुवन को धनी । प्रगट होइ जब केवल ग्यान शुद्ध सरूप वहै भगवान ॥ इति श्री भैयाभगौतीदास कृत ब्रह्मविलास सम्पूर्णम् । मासा Closing Colophon!
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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