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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Purana, Carita, Kathā) - १०७५. अर्थप्रकाशिका Opening ! Closing । बहुरि ज्ञानकू अल्पाक्षर करि प्रधान कहया तोहू, अल्पाक्षर त पूज्यपणा प्रधान है । अर दर्शन पूज्य है। चरतो भव्यनि उर विष स्यादद्वाद उज्जास। . यात निज परतत्व सरिव होय जु अर्थ प्रकाश ।। इति श्री तस्वार्थ सूत्र की अर्थप्रकाशिका नाम वचनिका समाप्त । शुभ भवतु। कल्याणमस्तु'। Colophon: १०७६ आत्मानुशासन Opening i Closing : Colophoni वीर प्रगम्य भववारिनिधिप्रपोतमुद्यौतिताऽखिलपदार्थमनरूपपुण्यम्, निर्वाणमार्गमऽनवद्मगुणप्रवर्ध आत्मानुशासनमह प्रवर प्रवक्ष्ये ॥ श्री नाभेयोजिनोभूयाद् भूयसे श्रेय सेसवः । जगद्ज्ञान जलेयस्यद धाति कमलाकृति ॥ इनि श्री गुणभद्राचार्य कृत आत्मानुशामन काव्य प्रवध सपूर्णम् । । लिखित पडित परमानेदेन टकत नामनगरे, सवत् १९२८ का मार्गसिरमासे कृष्णपक्षे तिथौ दशम्या गुरुवासरे उपाध्याय विद्ध वरिष्ठ श्री १०८ भट्टारक राजेन्द्रकीर्तिजित् पठनार्थ' परमानद शुभभूयात् । श्रीरस्तु । देखे, जै० सि० भ० न० I, ऋ० १७२। १०७७ बनारसी विलास Opening : प्रथम सहस्रनाम सिन्दूर प्रकरधाम वावनी सर्वया वेद निरन पचासिका। , सठि सिला का मारग ना करम की प्रकृति कल्यान मदिर , भावदन वापि।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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