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________________ १२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah. Closing : ए त जे नरनारी करै, ते नर भवसागर उत्तर । अजर अमर पद अविचल लहै, ब्रह्मज्ञानमांगर इमै कहै।।४१। इति श्री निरदीप सप्तमी कथा समाप्तम् । देखें, जै० सि० भ० ग्र० I, क्र. ७८ । Colophon १०३७. पंचमी कथा Opening । Closing : वेदो श्री जिनराज के, चरण कमल गुणहीर । भव सागर नारण तरण, शरण हरण पर पीर ।।१।। हस्तिकतिपुर में यह सची, श्री सुरेन्द्रभूषण रची । यह विधि व्रतपाले जो कोई, सो नरनारी अमर पट्ट होई ॥१०॥ इति पंचमी कथा समाप्ता। Colophon. १०३८ पावपुराण Opening . Closing . Colophon मोहं महातम दलन दिन तप लक्ष्मी भरतार, से पारस परमेम हो उ सुमति दातार 1१11 सवत् सत्रह मै समै और नवामी लीय । सुदि अषाढ तिथि पंचमी ग्रन्थ समापत कीय ।। इति श्री पार्श्वनाथ पुराण भाषा सम्पूर्णम् । श्री पार्श्वपुराण जी बाबू महावीर प्रसाद मनोहरदास के वास्ते लेखक लाला चदुलाल लिखा सन १२६३ साल सलोनों के रोज पूरा हुआ। देखें जै०सि० भ० ० ०११॥ Orening १०३६ पार्श्वपुराण वीज सरिव फलभोगवं जो किसान जगमाहि । त्यो चत्री नृप सुख कर धर्म विमार नाहि ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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