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________________ १० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : Colophon . उपर रवा मुखराज ते, श्री नीमध र देव । भाव भगति चित लायके सब जन करते सेव ।५२३॥ इति जवूचारित्र जी सम्पूर्णम् । लिखित राज्य कुमारचद आरामपुर नगरे स्वगह सवत १९३३ मिति वैशाख शुक्ल सप्तम्या ७ तिथौ रविवासरे निजाठनार्य पुन. भव्यजीव पठनार्थम् । शुभमस्तु कल्याणमस्तु । १०३१. लब्धिविधानकथा Opening प्रयम नमो श्री जिनवर पाय दूजे प्रणमी सारदमाय । लब्धि विधान तणी सुभ कथा भाषू जिन आराम छै यथा ॥१॥ श्री भूषण गगनायक वीर " . होमी सीध ॥५६ इति श्री लव्यि विधान कथा समाप्तम् । Closing Colophon: Opening : Closing : १०३२. महावीर-पुराण इण विधि कहिनी जत्रु कुमार सुनि सो कहसी निरधार । मागी के षिजत इकनारी मरतू चाहिलयौ ततकार ।२१। यात श्री जिनराज के चरण कमल सिरनाय, राखौ भवि उरके वि सुरग मुक्ति पदपाय ॥६३।। इत्या त्रिषष्ठिरक्षणमहापुराणस प्रहे भगवद्गुण मधाचाया गीतानुसारेण श्रीउत्तरपुराणस्य माषाया श्रीवर्द्ध मानपुराण परिममा तम् । इति श्री उत्तरपुराण समाप्तम् । शुभ सम्बत् १८६६ शाके १७३४ मासोत्तमेमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्या बुधवासरे पुस्तकामद पूर्णम् । रघुनाय समंगे लेखि पट्टनपुरगायघाट मध्ये निवपति । लेखक पाठकयो मगनमस्तु । Colophon : १०३३. नेमिनाथ विवाह Opaning : एक समे जो समुद्र विज छारि कामधनेम को व्याह रचो हैं, गावत मगलाचार वधु कुल में सबके जो उछाह मची है।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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