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________________ श्री जैन सिद्ध वन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Sıddhant Bhavan,Arrah Colophon . विशेष-- इति श्री दरसन कथा सम्पूर्णम् । २०१६ पर उल्लिखित पद के Author भारामल्ल है। लगता है कि पद इपी से सयुक्त है अत.' इसका भी लेखक भारामल्ल को ही होना चाहिए है। Opening 1 १०२४. धर्म-पापबुद्धि कथा अयो यानगरे राजासिंहसेनो राज्य करोति । तन्मत्रीवृद्धिसेनो धर्मन्पाय मत्र करोति ।, राजा दुराचारासत्यपरधनदारहरणलक्षणान्याय विदधाति । ... .. तपो विधाय यथा स्व स्वर्गेषु जग्मु । सदैव धर्मवृद्धि करणीया। सर्वलोकस्वायमुपदेश.। . इति धर्मपाययुक्तयो. कथा सपूर्णम् । , Closing Colophon . १०२५. धूपदशमी कथा Opening : Closing पच परम गुरु वदन करू , ताकरि मभ अव सब हरू । श्रुतसागर ब्रह्मचार को ले पूरव अनुसार । भाषासार बनायके सुखत खुशियाल अपार ॥१४॥ इति सपूर्णम् । सवत् १९४८ भादवा सुदी २ लिखाइत मराज जी लिखित मदनगोपाल ने कलकत्ता जैन मदिर मध्ये । Colophon . १०२६. दुधारसवत-कथा । Opening : Closing प्रथम नमो श्रीवीरजिनद वदो सदगुरु पद अरविंद । जासु प्रसाद कहू सुभकथा, गोतम गणधर भाषी यथा ॥2 श्रेणक आगल गोतम स्वामि-एह कथा भाषी अभिराम । ए दुधारस व्रतनी कथा चद भने मै भाषी तथा,॥४॥ . इति दुधारस जी की कथा समाप्तम Colophont
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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