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________________ २८८ धीर्जन सिद्धान्त भवन अन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab Closing : इति परमजिनेन्द्र विनुतमहिंद यहः कलिकुडमरवड खडद्वय । पूजयति सजयति स्तुतिकृतिमयति प्रतिसिव मुक्तभुदयं ।। इति कलिकु डल पूजा समाप्तम् । Colophon: ८६३. कलिण्डाराधना विधान Opening : सत्पुष्पधाम्ना प्रविराजितेन पुष्पेण पूर्णन सुपल्लवेम । सम्मगलार्थ कलिकुंडदेवम् उपानभूमौ समलकरोमि ।। शुद्ध न शुद्धह्रदकूपवापीगगातटाकादिनामावृतेन । शीतेन तोयेन सुगधिनाहं भक्त्याभिषिञ्चे कलिकुण्डयन्त्रम् । Closing: कलिलदहनदक्ष योगियोगोपलक्षम् ह्याविकुलकलिकुडो दडपार्श्वप्रचडम् शिवसुखमभवद्धा वासवल्ली वसन्तम् प्रतिदिनमहमीडे वर्द्ध मानल्य सिद्धयै ।। विशेष-प्रशस्ति सरह ( श्री जैनसिद्धान्तभवन ) द्वारा प्रकाशित पृ०६६ मे संपादकभूजवली शास्त्री ने ग्रन्थ के बारे लिखा है-इम कलिकूण्डाराधना' के आदि मे कलिकुण्डयन्त एवं श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा का अभिषेक, भूमिशुद्धि, पञ्चगुरुपूजा और चत्तारि अर्घ्य निर्दिष्ट हैं। वाद पार्श्वनाथ पजा एव इन्ही की मन्त्रस्तुति धरयोन्द्र यक्ष और पद्मावती यक्षी की पूजा तथा इनके मन्त्र स्तोत्र दिये गये हैं। इसके उपरान्त मत्र लिखने की विधि और फल इत्यादि का निर्देश करते हुए प्रस्तुत मन्त्र की पूजा बतलाई गयी हैं। अन्तमै यन्त्रीय मंत्र की स्तुति, मंत्रस्थ पिश्डाक्षरोका अर्ध्य, अष्टमातृका की पूजा, मन्त्रपुष्प और जयमाला लिखी गयी है। इसके कर्ता भी अभी तक आज्ञात ही है। ९६४. कर्मदहन पाठ भाषा Openings लोक शिखर तन छाडि अमूरति हो रहैं । चेतन ज्ञान सुभाव गेहत भिन्न भये ।। लोकालोक सुकाल तीन सव विधिधनी । . जाने सो सिद्धदेव जजो बहु भुति उनी।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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