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________________ - २६२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Join. Siddhant Bhavan, Arrab ८४१. देवशास्त्रगुरु पूजा Opening : देखें, ऋ० ८३६। Closing i जे तपसूरा संयमधीरा सिद्धिवभूअणुराइया । रयनत्तयरजिय कम्महगजिय ते रिसिवर मम झाइया । Colophon: इति देवशास्त्रगुरुपूजा जी समाप्तम् । जि० ग्र०र०, पृ० १९९१ ८४२. देवपूजा Opening : ___ॐ ह्रीं क्ष्वी स्नान स्थान भू भुदयतु स्वाहा। Closing | तुष्टि पुष्टिमनाकुलत्वममिल सौख्यत्रिय सपदो। दद्यात्पुत्रकलित्रमित्रसहितेभ्यः श्रावकेभ्यः सदा ।। Colophon : इति न्हवण विधि सपूर्णम् ।। देखे (१) दि. जि० प्र० २०, पृ० १६७ । ८४३. धर्मचक्रपाठ Opening: आपदागम परारधो के, स्वामी सर्वज्ञ आप हौं । सुरिंद वृद सेव है, आपही को इसलोक मे ॥१॥ Colsing | वर्षत्वानद मोघा प्रशरतु सतत भद्रमाला विशाला, ... ... भोजयुग्मप्रसुते ॥ Colophoni इत्याचार्यवयं धर्मभूपणपदाभोजदिवाकरायमान श्री यशोनं. दीसुरिभि• प्रणीत धर्मचक्रपाठ आश्विन शुक्ल प्रतिपदा वुद्धवार सवत् १९६२ आरामपुर में हरिदास ने लिखकर पूर्ण किया। ८४४. धर्मचक्रपाठ Opening : ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शना नम स्वाहा, ॐ ह्री सम्यग्ज्ञानाय नमः । Closings ॐ ह्रीं मिश्रमिथ्यात प्रकृत श्री सिद्धदेवेभ्यो नमः स्वाहा । Colophoni अनुपलब्ध ५४५, धर्मचक्र पूजा Opening : ह्रींकारेणदृतोहन त्रिदलरसदल तद्वहित, वीजजुग्म तद्वच्चवातराले सकलशशि मिव सेपयेत्परमेष्ठीन ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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