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________________ २७२ धी जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Join Siddhant Bhavan, Art :}} ८०७. अहंववृहद शान्तिविधान Opening i Closing : Colophon जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु ... .-। __... - - लोर सठपसाहूण । एतद्देशीया महाभिषेक नवर्वन्ति तस्मान्मया न लिखितम् । इत्यहदेववृहदशान्ति विधि ममाप्त । ८०८. अर्हदेव शातिकाभिषेक विधि Opening i देखें क्र. ७५७। Closing ! ___ अनेन विधिना यथा विभवमर्हत स्नापन विधाय महमन्वह सृजति य शिवाशाधर स चक्रिरितीर्थकृताभिक सूरै. समचितपद' सदासुखसुधा बुधौ मज्जति । इति पूजाफलम् । ColophonI एव समुदायाक. ३६० इत्यदेव शातिकाभिषक बाधा समाप्ता । विशेष—यह ग्रन्य करीव १८०० वि० स० का है। ८०९. अथ प्रकारीपूजा विधान Opening : Closing जलधारा चदन पहया, अक्षत अरू नैवेद । दीपधूप फल अर्घजुत, जिन पूजा वसुभेद ॥ यह जिनपूजा अष्टविधि, कीर्ण कर सुचि अग। प्रति पूजा जलधारसू, दीजै अरघ अभग । इत्यष्टकारी पूजा विधानम् । Colophon: ८१०. अतीतचतुर्विशति पूजा Opening : प्रभ जी Closing . १-श्री निर्वाण जी, २-मागर जी, ३-महासाधुजी, ४-विमल " + । मागर जन्माभिषेकामये गर्भावतारे भने,
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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