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________________ २६२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing i Colophon : अनृपलब्ध। अनुपलब्ध । ७७०: सिद्धभक्ति । . Opening i Closing 1 सिद्धानुह तकर्मप्रकृति ... ... यथा हेमभावोगन्धि । " वोहिलाहो इसुगइगमण समाहिमरण जिणगुण संपत्ति होउमुवक ।। इति मिद्धमक्ति । Colophon: ,७७१. सिद्धप्रिय स्तोत्र टीका Opening! सिद्धिप्रिय प्रतिदिन .... भूपीक्षणेन । । Closing __ तुष्टि देशनया • सतोमीशितम् ।।२।। Colophon: इति श्री सिद्धिप्रिय स्तोत्र टीका सपूर्णम् । विशेष-२४ श्लोको की सस्कृत टीका है, '२५ वे श्लोक की टीका नहीं है। देखे-(१) दि० जि. न० २०, पृ० १५१ । (२) जि० र० कों, पृ० ४३८ । (३) रा. सू. II, पृ० ४६, ५३, ११२, ३३२ आदि ।४) रा. सू. III, पृ० १०६, १४१, १५६, २४४ ॥ ।. .. (५) प्र. जै० सा०, पृ० २४६ । ७७२. सिद्ध परमेष्ठी स्तवन Opening : अनन्तवीरयोगिन्द्रः सप्रणस्यपुण्मुना । एवषोनात्मनो मृत्यु परिपृष्टः समादिशत् ॥१॥ Closing: परिवार्यमहावीर्य रामलक्ष्मणसंगतम् । किष्किधनगरं प्रापु विविश्वस्त्रेमहर्द्ध या ॥३शा Golophon : इति श्री रविषणाचार्यकृत पद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ लक्ष्मणजी कृत मिद्वपरमेष्ठी स्तवन समाप्तम् ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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