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________________ १८२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain. Siddhant Bhuvan, Arruh Colophon: इति श्री त्रेपनक्रिया कोस विधान का छद की जाति का अक २६१५ एक अधिकार का अक १०८। श्लोक सख्या टीका शुद्ध । ३००० । तीन हजार के ऊन मान । ___ इति श्री क्रियाकोस भाषग्रन्थ सिही किमनसिंघ कृत सपूर्णम् श्रीरस्तु ॥ ५००. उर्वशीनाममाला Opening : Closing: श्री आदिपुरुप कहिये जगत, जाकी आदि अनत । अगम अगोचर बिम्बपति, सो सुमिरो भगवत ॥ वक्तासुरगुरुसी हुतो श्रोता हो सुरराज । तहमवन पारन लयो कहा औरको काज ॥ इति श्री शिरोमणि कृता उर्वशीनाममाला सपूर्ण । शुभभवतु । Colophon: ५०१. विश्वलोचन कोष Opening : जयति भगवानास्ता धर्म प्रसीदतु भारती, वहन्तु जगतीप्रेमोद्गारतरज्वशुभ जना । अयमपि ममश्र यानगु स्तनोन्नुमनोमुद किमधिकमितस्त्यक्तावेगान् भवन्तु विपश्चित ॥१॥ Closing : हेहे व्यस्तो समस्तौ च स्मृत्य मत्र हूनिषु ॥ ___ हौच होव समस्तौ व सबुद्धया ध्यानयोर्मतौ ॥६६॥ Colophon ' ' इति श्री पडित श्री श्री धरसेन विरचितायां विश्वलोचन मित्यपराभिधानाया मुक्तवल्या नामार्थकाड समाप्त ।। मवत् ।।१९६१।। वर्षे ? मासे शुक्लपक्षे ........ गेदासा ? आनतीयो १३ दिने गुरुवारे ॥ ५०२. अलंकारसग्रह Opening : जगढ चिन्यजनन जागरुकपद्वयम् । अवियोगरसाभिन्नमाध मिथुनमाश्रये ॥१॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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